हम को अपनाया पुंजीभूत किया तुमने
थी रिताम्बरा प्रज्ञा की आत्मा रूप सी तुम
माँ मात्र दिवस पर बहुत याद आई हो तुम
जैसे आंधी का झोंका दीपक बुझा गया
निज काया की ममता को छोड़ गई हो तुम
माँ मात्र दिवस पर बहुत याद आई हो तुम
पतझर मिटाकर लाने को मधुमय बसंत
स्वजनों के लोचन नम करके हो चली गई तुम
माँ मात्र दिवस पर बहुत याद आई हो तुम
पथ से विचलित कर सकी न कभी मोह माया
विश्वास नहीं होता मुझको यूँ छोड़ गई हो तुम
माँ मात्र दिवस पर बहुत याद आई हो तुम
जो महा ज्योति होती है अविरभाव वही होती
सत्कर्मो से हो गई प्रभु की प्यारी तुम
माँ मात्र दिवस पर बहुत याद आई हो तुम
निशब्द हो गया है आज मेरा ये रोम रोम
नम आँखों से शत शत वंदन स्वीकार करो तुम
माँ मात्र दिवस पर बहुत याद आई हो तुम