Monday, 14 May 2012

मात्र दिवस

हम को अपनाया पुंजीभूत  किया तुमने 
थी रिताम्बरा प्रज्ञा की आत्मा रूप सी तुम 
माँ मात्र दिवस  पर बहुत  याद आई हो तुम  

जैसे आंधी का झोंका दीपक  बुझा गया 
निज  काया की ममता को छोड़ गई हो तुम 
माँ मात्र दिवस  पर बहुत  याद आई हो तुम  

पतझर मिटाकर  लाने को मधुमय  बसंत 
स्वजनों के लोचन  नम  करके हो चली गई तुम 
माँ मात्र दिवस  पर बहुत  याद आई हो तुम  

पथ  से विचलित  कर सकी न कभी मोह माया 
विश्वास  नहीं होता मुझको यूँ छोड़ गई हो तुम 
माँ मात्र दिवस  पर बहुत  याद आई हो तुम  

जो महा ज्योति होती है अविरभाव वही होती 
सत्कर्मो से हो गई  प्रभु की प्यारी तुम 
माँ मात्र दिवस  पर बहुत  याद आई हो तुम 

निशब्द हो गया है आज मेरा ये रोम  रोम 
नम  आँखों से शत  शत  वंदन स्वीकार करो तुम 
माँ मात्र दिवस  पर बहुत  याद आई हो तुम 

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