Sunday 23 December 2012

कलयुगी पूत

गुम हो गया मुझमें ही, मेरा वो बचपन
आत्मा को ही छीन ले गया, आते ही यौवन
अपने अन्दर की उस चीख को, चाहती हूँ भूल जाना
नासूर बनगया है पुरुषत्व का, परचम लहराना
घृणा होती है अब अपने ही, इस रूप से
जो विरासत में मिला है, इस कलयुगी पूत से .

Monday 11 June 2012

आप

रहते हो साथ
जैसे हवा का वास
जीवन में विश्वास
खुशबू का अहसास
ह्रदय में स्पन्दन
विपत्ति में क्रन्दन
कहानी में चरित्र
पात्रों की अभिव्यक्ति
तूलिका में रंग
प्रक्रति के संग
कविता में शब्द
मन में आनन्द
जीव में आत्मा
आत्मा में प्रकाश
प्रकाश में आप
रहते हो साथ 

Monday 14 May 2012

माँ

माँ तुम  हो तो 
घर घर है 
नहीं तो सिर्फ  मकान है ..

माँ तुम  हो तो
घर आने का चाव है
हर दिन  एक  त्यौहार है ..

माँ तुम  हो तो
सर पर स्नेहिल हाथ है 
जीवन में उल्लास है ..

माँ तुम  हो तो 
मायका गुलज़ार है 
मूर्तियों में भी जान है ..

माँ तुम  हो तो ...





मात्र दिवस

हम को अपनाया पुंजीभूत  किया तुमने 
थी रिताम्बरा प्रज्ञा की आत्मा रूप सी तुम 
माँ मात्र दिवस  पर बहुत  याद आई हो तुम  

जैसे आंधी का झोंका दीपक  बुझा गया 
निज  काया की ममता को छोड़ गई हो तुम 
माँ मात्र दिवस  पर बहुत  याद आई हो तुम  

पतझर मिटाकर  लाने को मधुमय  बसंत 
स्वजनों के लोचन  नम  करके हो चली गई तुम 
माँ मात्र दिवस  पर बहुत  याद आई हो तुम  

पथ  से विचलित  कर सकी न कभी मोह माया 
विश्वास  नहीं होता मुझको यूँ छोड़ गई हो तुम 
माँ मात्र दिवस  पर बहुत  याद आई हो तुम  

जो महा ज्योति होती है अविरभाव वही होती 
सत्कर्मो से हो गई  प्रभु की प्यारी तुम 
माँ मात्र दिवस  पर बहुत  याद आई हो तुम 

निशब्द हो गया है आज मेरा ये रोम  रोम 
नम  आँखों से शत  शत  वंदन स्वीकार करो तुम 
माँ मात्र दिवस  पर बहुत  याद आई हो तुम 

Wednesday 4 April 2012

बातें


जीवन यात्रा में मैंने
मित्र जो बनाये
वो क्या मिलेंगे कभी
जो पीछे छूट गए 
कभी गमगीन हुए 
कभी हर्षा गए 
बड़े याद आये 
जो पल बीत गए 

रिश्ता




औरत और पर्वत का रिश्ता बड़ा पुराना
दुःख साक्षी है जानता है रिश्ता निभाना
पर्वत स्थिर होकर भी विचारशील
शांत अविचलित और गंभीर
मूक दर्शक बन जाते हैं विचार
छातियों में धंस धंस कर करते हैं वार
औरत जिस्म रखती है गिरवी मिटाने को भूख
कोख में करती है सृजन पिलाती है अपना दूध
गगन भेदी आर्तनाद पर वाणी निःशब्द
अदम्य साहस का दिखाती है उपक्रम
निरुपाय है क्या करे जानती है कसौटी का सच 

Tuesday 13 March 2012

एहसास

उनका स्पर्श ,बिना कहे ही सब कुछ कह जाता
उनका रेखांकन ,बिना बोले ही समझ में आ जाता
उनका व्यवहार ,बिना पहचान अस्तित्व का बोध करा जाता
उनका चिंतन ,बिना मध्यस्थ परमात्मा से साक्षात्कार करा जाता
उनका वक्तव्य ,बिना प्रवचन सत्संग का एहसास करा जाता

 

अंतर्मन के भाव

मेरे लिखे चंद शब्दों को
लोग कविता कहने लगे
पर ये कोई कविता नहीं
अंतर्मन के अव्यक्त भाव हैं
जो मुझसे पहले भी थे
मेरे जाने के बाद भी रहेंगे
नश्वर काया जब तक मेरी है
शब्द भी मेरे हैं और भाव भी मेरे 

Wednesday 7 March 2012

होली

जिंदगी अपनी है पर खुद ही अवगत नहीं
खुशियाँ दिलो दिमाग में है समाई दुःख की न लेशमात्र परछाई है
शाश्वत आकार को खुशियाँ खोजनी नहीं होती स्वतः मिलती हैं
प्रेम की पराकास्ठा में तल्लीन मन किसी वस्तु का मोहताज नहीं होता
प्यार की मदहोशी में मना लो होली रंग लो तन और मन वक्त किसी का गुलाम नहीं होता

Monday 5 March 2012

दिल में बसा गए

तीव्र जलधार, बिजली की चमक और बारिस मुसलाधार थी
कानों में गूंजते मधुर रागिनी बने सप्त स्वरों की माला थी
स्वर अंतर्मन में समां गए आनंद की अतिरेक दर्शा गए
अनेको चित्र जो जतन से जुटाए थे उन्हें जीवंत बना गए
गुदगुदी होती है सोच कर उन पलों को जो रसपान करा गए
कैसे निकलूं यादों के चक्रव्यूह से जो तुम दिल में बसा गए


Monday 16 January 2012

बेटी



निष्ठुर काल नें प्रतिशोध लिया
मुझे बेटी का जन्म वरदान में दिया
बेटी का जन्म यानी अनेक प्रश्न चिन्ह
अस्तित्व होते हुए भी मन है खिन्न
परिवर्तनों के प्रतिबिम्ब वहन करती
ऊपर से शान्त पर अन्दर से तड़पती
हाथों से मुंह छुपाकर अश्रु बहाती हूँ
कुल की कीर्ति का परचम लहराती हूँ
समाज की नज़रों में गौशाला की गाय हूँ
कोटि कोटि दुखों को आकाश सा सहती हूँ  
स्वाभिमान की बलि देकर रहस्यों को ढकती हूँ
ममता और वात्सल्य के बदले अपनों से लुटती हूँ


Wednesday 4 January 2012

पीड़ा

परम पिता मेरी भी विनती सुन लेते 
शायद इस पीड़ा को आप समझ जाते 
लज्जा क्षमा धैर्य ये गहने न देते 
बदले में इसके दो सींगे दे देते 
जंगल में रहती रक्षा तो करती
इन्सान की शक्ल में हैवान से बचती 
जीना नहीं है अब मुझे दो मुक्ति 
विवाह की पीड़ा से वह भी है सस्ती 

प्रदर्शनी

आंसू पलकों पर मचलते रहे
संशय के बादल उसे पीते रहे
विडम्बनाओं के दौर अनवरत चलते रहे
हम प्रदर्शनी बने अंतर्द्वंद से साक्षात्कार करते रहे
हम पढ़े गए ...    ..जैसे हों पत्रिका
हम जांचे गए .      जैसे परीक्षा की पुस्तिका
हम परखे गए      .जैसे कोई गहना
हम तपाये गए .....जैसे कसौटी पर सोना
हम सुने गए ........जैसे बेसुरी तान
हम सहे गए ........जैसे युद्ध का ऐलान
हम भोगे गए ......जैसे अमर बेल
हम देखे गए .......जैसे नौटंकी का खेल
हमउड़ाए गए   ...जैसे बड़ी सी मक्खी
हम रुलाये गए ...जैसे पिंजरे में पक्षी
हम कोसे गए .....जैसे पाप की गठरी
हम अपनाये गए .जैसे बंजर प्रथ्वी



पूर्णता की प्राप्ति

बाहर तूफान बड़े वेग से चल रहा था
परन्तु मेरे अन्दर हवा का प्रवेश तक न था
कालिमा के कारागार में बंद हुई सासों से मुक्ति का अहसास
ईश्वरीय शक्ति को भूतल पर उतारने का साहसिक प्रयास
नियति ने तपती हुई वसुधा को क्षितिज से मिला दिया
गर्म वाक्य के धुंए से घुटकर मरने से अच्छा धधक कर जला दिया
पवित्र अग्नि में शरीर पञ्च तत्व में विलीन हो रहा था  
परम नीरवता में पूर्णता की प्राप्ति का आनंद मिल रहा था .



शब्द

भावनाओं की भाप फैलती है अंतर्मन में
तो शब्द उड़ते हैं बादल बन आसमाँ के आँचल में
शब्द कैद में नहीं रहते न जीते हैं पिंजरे में
करते ही रहते हैं अभिव्यक्ति की तैयारी अंतर्मन में
कभी कभी बेचैन करते हैं मन को सोने नहीं देते रात सारी
चुभाते हैं नश्तर ह्रदय में पड़ते हैं खुशियों पर बहुत भारी
पर अच्छे अच्छों को नचाते हैं बन कर कुशल मदारी
फैलाते हैं खुशबु वातावरण में देते हैं उल्लास की पिटारी
शब्द जो मिटटी को बनाते सोना और सोने को मिटटी
करते हैं वर्षा अमृत रूपी जल की चलाते हैं सम्पूर्ण सृष्टि |



सिंदूरी सूरज

खिला हुआ सिंदूरी सूरज
उसे नहीं है पर्वत और समुद्र की गरज
अपनी ही मस्ती मैं सदा रहता है चूर
पर्वत और समुद्र की आड़ लेकर जाता है दूर
मिलकर प्रियतम संग रात बिताता है
प्रातः तरोताजा होकर ही आता है .





Sunday 1 January 2012

तड़पता है

अगड़ित विक्षुब्ध लहरें
जो कभी भी न ठहरें
निष्फल सीपियों की छटपटाहट 
विक्षिप्त समुद्र की घरघराहट 
सिवार का कवच बदहवास
फेन में भी बर्फ का अहसास
छटपटाते मछलियों के झुण्ड
किनारे पर नारियल के कुञ्ज
अमूल्य रत्नों का भंडार छुपाये
तड़पता है अपना दर्द किसे बताये 

अग्निपरीक्षा

जब वक्ता की मानसिक स्थिति गड़बड़ाती
तभी सदियों पुरानी अधूरी कहानी कही जाती
एक था राजा एक थी रानी
दोनों मर गए खत्म कहानी
राजा रानी तो संकेत मात्र हैं
असली कहानी को जीता हर पात्र है
अपनी और अपनों की कहानी में दम है
जिंदगी जीना क्या किसी अग्निपरीक्षा से कम है