गुम हो गया मुझमें ही, मेरा वो बचपन
आत्मा को ही छीन ले गया, आते ही यौवन
अपने अन्दर की उस चीख को, चाहती हूँ भूल जाना
नासूर बनगया है पुरुषत्व का, परचम लहराना
घृणा होती है अब अपने ही, इस रूप से
जो विरासत में मिला है, इस कलयुगी पूत से .
आत्मा को ही छीन ले गया, आते ही यौवन
अपने अन्दर की उस चीख को, चाहती हूँ भूल जाना
नासूर बनगया है पुरुषत्व का, परचम लहराना
घृणा होती है अब अपने ही, इस रूप से
जो विरासत में मिला है, इस कलयुगी पूत से .
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