भावनाओं की भाप फैलती है अंतर्मन में
तो शब्द उड़ते हैं बादल बन आसमाँ के आँचल में
शब्द कैद में नहीं रहते न जीते हैं पिंजरे में
करते ही रहते हैं अभिव्यक्ति की तैयारी अंतर्मन में
कभी कभी बेचैन करते हैं मन को सोने नहीं देते रात सारी
चुभाते हैं नश्तर ह्रदय में पड़ते हैं खुशियों पर बहुत भारी
पर अच्छे अच्छों को नचाते हैं बन कर कुशल मदारी
फैलाते हैं खुशबु वातावरण में देते हैं उल्लास की पिटारी
शब्द जो मिटटी को बनाते सोना और सोने को मिटटी
करते हैं वर्षा अमृत रूपी जल की चलाते हैं सम्पूर्ण सृष्टि |
तो शब्द उड़ते हैं बादल बन आसमाँ के आँचल में
शब्द कैद में नहीं रहते न जीते हैं पिंजरे में
करते ही रहते हैं अभिव्यक्ति की तैयारी अंतर्मन में
कभी कभी बेचैन करते हैं मन को सोने नहीं देते रात सारी
चुभाते हैं नश्तर ह्रदय में पड़ते हैं खुशियों पर बहुत भारी
पर अच्छे अच्छों को नचाते हैं बन कर कुशल मदारी
फैलाते हैं खुशबु वातावरण में देते हैं उल्लास की पिटारी
शब्द जो मिटटी को बनाते सोना और सोने को मिटटी
करते हैं वर्षा अमृत रूपी जल की चलाते हैं सम्पूर्ण सृष्टि |
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