परम पिता मेरी भी विनती सुन लेते
शायद इस पीड़ा को आप समझ जाते
लज्जा क्षमा धैर्य ये गहने न देते
बदले में इसके दो सींगे दे देते
जंगल में रहती रक्षा तो करती
इन्सान की शक्ल में हैवान से बचती
जीना नहीं है अब मुझे दो मुक्ति
विवाह की पीड़ा से वह भी है सस्ती
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