Wednesday, 4 January 2012

पीड़ा

परम पिता मेरी भी विनती सुन लेते 
शायद इस पीड़ा को आप समझ जाते 
लज्जा क्षमा धैर्य ये गहने न देते 
बदले में इसके दो सींगे दे देते 
जंगल में रहती रक्षा तो करती
इन्सान की शक्ल में हैवान से बचती 
जीना नहीं है अब मुझे दो मुक्ति 
विवाह की पीड़ा से वह भी है सस्ती 

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