Monday, 16 January 2012

बेटी



निष्ठुर काल नें प्रतिशोध लिया
मुझे बेटी का जन्म वरदान में दिया
बेटी का जन्म यानी अनेक प्रश्न चिन्ह
अस्तित्व होते हुए भी मन है खिन्न
परिवर्तनों के प्रतिबिम्ब वहन करती
ऊपर से शान्त पर अन्दर से तड़पती
हाथों से मुंह छुपाकर अश्रु बहाती हूँ
कुल की कीर्ति का परचम लहराती हूँ
समाज की नज़रों में गौशाला की गाय हूँ
कोटि कोटि दुखों को आकाश सा सहती हूँ  
स्वाभिमान की बलि देकर रहस्यों को ढकती हूँ
ममता और वात्सल्य के बदले अपनों से लुटती हूँ


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