Sunday, 1 January 2012

तड़पता है

अगड़ित विक्षुब्ध लहरें
जो कभी भी न ठहरें
निष्फल सीपियों की छटपटाहट 
विक्षिप्त समुद्र की घरघराहट 
सिवार का कवच बदहवास
फेन में भी बर्फ का अहसास
छटपटाते मछलियों के झुण्ड
किनारे पर नारियल के कुञ्ज
अमूल्य रत्नों का भंडार छुपाये
तड़पता है अपना दर्द किसे बताये 

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