खिला हुआ सिंदूरी सूरज
उसे नहीं है पर्वत और समुद्र की गरज
अपनी ही मस्ती मैं सदा रहता है चूर
पर्वत और समुद्र की आड़ लेकर जाता है दूर
मिलकर प्रियतम संग रात बिताता है
प्रातः तरोताजा होकर ही आता है .
उसे नहीं है पर्वत और समुद्र की गरज
अपनी ही मस्ती मैं सदा रहता है चूर
पर्वत और समुद्र की आड़ लेकर जाता है दूर
मिलकर प्रियतम संग रात बिताता है
प्रातः तरोताजा होकर ही आता है .
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