Wednesday, 4 January 2012

सिंदूरी सूरज

खिला हुआ सिंदूरी सूरज
उसे नहीं है पर्वत और समुद्र की गरज
अपनी ही मस्ती मैं सदा रहता है चूर
पर्वत और समुद्र की आड़ लेकर जाता है दूर
मिलकर प्रियतम संग रात बिताता है
प्रातः तरोताजा होकर ही आता है .





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