Tuesday, 29 January 2013

फिर से मुस्करा ले

सच जो बदल न पाया उसे सहने की हिम्मत जुटा ले
अकेले पन से मिला दुःख अब आँचल में छुपा ले

तिरस्कार में आंसू बहें तो वह भी बह जाने दे
जी ले कुछ ऐसे पल जो आत्मा को तृप्त कर दे

सपने जो इन्द्रधनुष के रंगों वाली तितली बना दे
प्रेम जो सोलह श्रंगार किये दुल्हन सी सेज सजा दे

संघर्ष ही जीवन है अब नए जीवन को गले लगा ले
भूल जा शिकवा शिकायत और फिर से मुस्करा ले   

Monday, 7 January 2013

तुम और मैं

तुम असीम मैं छुद्र बिंदु हूँ
तुम अगाध तो मैं सीमित हूँ
तुम स्रष्टि रचयिता मैं रचना हूँ
तुम प्रेम पुजारी मैं प्रियतम हूँ
तुम घर आँगन मैं उपवन हूँ
तुम लोरी मैं स्वप्न सद्रश हूँ
तुम अनंत और मैं अंकुर हूँ
तुम और मैं मिल एक बिंदु हूँ