Tuesday, 29 January 2013

फिर से मुस्करा ले

सच जो बदल न पाया उसे सहने की हिम्मत जुटा ले
अकेले पन से मिला दुःख अब आँचल में छुपा ले

तिरस्कार में आंसू बहें तो वह भी बह जाने दे
जी ले कुछ ऐसे पल जो आत्मा को तृप्त कर दे

सपने जो इन्द्रधनुष के रंगों वाली तितली बना दे
प्रेम जो सोलह श्रंगार किये दुल्हन सी सेज सजा दे

संघर्ष ही जीवन है अब नए जीवन को गले लगा ले
भूल जा शिकवा शिकायत और फिर से मुस्करा ले   

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