Thursday, 22 August 2013

संक्रमित काल

आठ वर्ष की बिटिया अचानक बड़ी हो गई
मुझे समझाने और ताने मारने लग गई
प्रश्न पर प्रश्न मन बड़ा अचम्भित है
उत्सुकता में डूबा हुआ मनोरंजन अपेक्षित है
पिता हूँ इसलिए शायद सह लूँगा अपमान
ससुराल वालों की फ़िक्र में हूँ परेशान
उनकी दशा तो सांप छछूंदर वाली होगी
न निगली जायगी न उगलते ही बनेगी
बेटी बड़ी तो हुई पर दिल से नहीं जुबान से
वो सीखती है समाज के संक्रमित काल से
जहाँ मां बाप का सर्वोच्च स्थान नहीं होता
बच्चों को ही आप कह संबोधित किया जाता
 वहां आठ साल की बिटिया बड़ी हो ही जाती है
नचाती है इशारों पर वत्सल्य का लाभ उठाती है 

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