मस्तिष्क में कुछ प्रश्न झकझोरते हैं
लिखे जाते हैं उनके उत्तर
उनसे उठे कुछ समाधान
हर समय दौड़ने से क्या होगा
कितना भयानक है परिवर्तन का काल
कितना अन्तर्द्वन्द
समस्याओं का समाधान
लेकिन जब मन थकता है
तभी मौन होता है
जग की परम्परा है
मीठे फल खाने की
प्रकृति का सिद्धांत भिन्न है
सुख दुःख के रस साथ निभाने की
जीवन की आपाधापी
मृग तृष्णा सी है मजबूर
मन पंछी होता है व्याकुल
क्या रातें सिंदूरी होंगी
करुणा सिक्त सिन्धुरस में भी
अन्तर्मन हिलता है
फिर मस्तिष्क में कुछ प्रश्न झकझोरते हैं
लिखे जाते हैं उनके उत्तर
क्रम अनवरन चलता है
कुछ प्रश्न कुछ उत्तर
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