Monday, 26 September 2011

अन्तर्द्वन्द

मस्तिष्क में कुछ प्रश्न झकझोरते हैं 
लिखे जाते हैं उनके उत्तर
उनसे उठे कुछ समाधान
हर समय दौड़ने से क्या होगा 
कितना भयानक है परिवर्तन का काल
कितना अन्तर्द्वन्द
समस्याओं का समाधान
लेकिन जब मन थकता है
तभी मौन होता है
जग की परम्परा है
मीठे फल खाने की
प्रकृति का सिद्धांत भिन्न है
सुख दुःख के रस साथ निभाने की
जीवन की आपाधापी 
मृग तृष्णा सी है मजबूर 
मन पंछी होता है व्याकुल 
क्या रातें सिंदूरी होंगी 
करुणा सिक्त सिन्धुरस में भी
अन्तर्मन हिलता है 
फिर मस्तिष्क में कुछ प्रश्न झकझोरते हैं 
लिखे जाते हैं उनके उत्तर
क्रम अनवरन चलता है
कुछ प्रश्न कुछ उत्तर  

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