Thursday, 29 September 2011

बेटी

शादी के लड्डू 
जन्मों का बंधन 
ससुराल का स्वप्निल सुख 
जड़ से उखड़ने का दर्द 
बचपन की यादें 
ज़िद कर मचलना 
रूठना मनाना सब कुछ 
इन सब के बीच 
बड़ी मुश्किल से 
मायके जाने केलिए 
मिली एक दिन की अनुमति 
रास्ते भर सोचती रही
माँ के आँचल में छुप
ढेर सी बातें करुँगी
जो बीती ससुराल में
सब कुछ कहूँगी
हर पल का हाल
ख़ुशी और दुःख सब कुछ बताउंगी
माँ से कुछ भी न छुपाउंगी
कैसे एक ही रात में कली से फूल बनी 
जिम्मेदारियां जो अब तक आप निभाती थीं
मैं भी निभाने लगी
घर बदला, रीति बदली 
प्रीति बदली, लोग बदले
मैं भी बदली
सजधज कर आतुर होकर आई 
माँ के आँचल में छुपी 
तो सब कुछ भूल गई 
दिन तो पल में बीत गया
वापस आ गई
अनकही बातें और मायूस मन लेकर
अब मन करता है 
चिड़िया सी बन जाऊं 
पंख निकल आएं  
उड़ कर आँगन के दाने मैं चुग लूँ 
जो मेरे जाने के बाद 
बेचैन मन से माँ ने चिड़ियों को डाले थे |

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