शादी के लड्डू
जन्मों का बंधन
ससुराल का स्वप्निल सुख
जड़ से उखड़ने का दर्द
बचपन की यादें
ज़िद कर मचलना
रूठना मनाना सब कुछ
इन सब के बीच
बड़ी मुश्किल से
मायके जाने केलिए
मिली एक दिन की अनुमति
रास्ते भर सोचती रही
माँ के आँचल में छुप
ढेर सी बातें करुँगी
जो बीती ससुराल में
सब कुछ कहूँगी
हर पल का हाल
ख़ुशी और दुःख सब कुछ बताउंगी
माँ से कुछ भी न छुपाउंगी
कैसे एक ही रात में कली से फूल बनी
जिम्मेदारियां जो अब तक आप निभाती थीं
मैं भी निभाने लगी
घर बदला, रीति बदली
प्रीति बदली, लोग बदले
मैं भी बदली
सजधज कर आतुर होकर आई
माँ के आँचल में छुपी
तो सब कुछ भूल गई
दिन तो पल में बीत गया
वापस आ गई
अनकही बातें और मायूस मन लेकर
अब मन करता है
चिड़िया सी बन जाऊं
पंख निकल आएं
उड़ कर आँगन के दाने मैं चुग लूँ
जो मेरे जाने के बाद
बेचैन मन से माँ ने चिड़ियों को डाले थे |
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