Monday, 26 September 2011

अद्वय

मैं अद्वय हूँ
पूंछने दो सवाल दर सवाल 
लम्हा लम्हा मुट्ठी में हो
यह माँ ही तो बतायेगी
तन से ही नहीं 
मन से भी सुन्दर बनायेगी
जीना सीखना है
दरिंदों से लड़ना है
चाटुकारों की मंडी में 
चन्दन सम रहना है
लोग क्या कहेंगे
इससे न डरना है
आत्मविश्वास से परिपूर्ण 
भविष्य संवारना है
कमज़ोर नींव नहीं 
मज़बूत बनना है
इसलिए पूंछने दो
सवाल दर सवाल
क्योंकि मैं अद्वय हूँ

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