Monday, 26 September 2011

अभिशप्त ख़ूबसूरती

सब्र का बांध टूटा 
अर्धविक्षिप्त  सी हो गई
सोचती हूँ
मेरा  यही चेहरा
माँ चाँद से तुलना करती थी
आँचल में छुपाती थी
नज़र उतारती थी
दुलराती इठलाती थी
बलैया लेती थी
गर्व से भरी हुई 
फूली नहीं समाती थी
खूबसूरत दिखूँ
जाने क्या क्या लगाती थी
पर आज
इसी खूबसूरती के कारण
लोग छेड़ते हैं
आहें भरते हैं 
मुझसे चिढ़ते हैं
ताने मारते हैं
प्यार को तरसती हूँ
शक भरी नज़रों से दो चार होती हूँ
कमाकर लाती हूँ
मार भी खाती हूँ
नफरत और दहशत का जीवन बिताती हूँ
रोज़ रोज़ मरती हूँ 
मरमर कर जीती हूँ
ख़ूबसूरती की सजा
हर पल भोगती हूँ

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