निष्ठुर काल नें प्रतिशोध लिया
मुझे बेटी का जन्म वरदान में दिया
बेटी का जन्म यानी अनेक प्रश्न चिन्ह
अस्तित्व होते हुए भी मन है खिन्न
परिवर्तनों के प्रतिबिम्ब वहन करती
ऊपर से शान्त पर अन्दर से तड़पती
हाथों से मुंह छुपाकर अश्रु बहाती हूँ
कुल की कीर्ति का परचम लहराती हूँ
समाज की नज़रों में गौशाला की गाय हूँ
कोटि कोटि दुखों को आकाश सा सहती हूँ
स्वाभिमान की बलि देकर रहस्यों को ढकती हूँ
ममता और वात्सल्य के बदले अपनों से लुटती हूँ