हरिण शिशु के समान बंधनभीरु
स्वप्निल संसार
पूर्णिमा का चाँद
श्रावण की वृष्टिधरा
मेघ गर्जते पर्वत
मेढकों का टर्र टर्र कलरव
शाख पर गाती चिड़िया
गुंजन करते भौरे
निस्तब्ध दोपहरी
दूर कहीं चील की पुकार
गहन रात्रि का अन्धकार
श्रंगालों का चीत्कार
श्रंगालों का चीत्कार
ढालू हरा मैदान
पानी भरे खेत
रम्भाती गाय
पूंछ उढाये बछड़े
ऊँचा छप्पर
संकरे रास्ते
खूबसूरत दोस्त
सिकड़ी का खेल
गुडिया की शादी
डांटती पड़ोसन दादी
गूंगी की मर्म वेदना
खिन्नचित्त पढाई करना
रामलीला का मंचन
नौटंकी का नर्तन
त्योहारों की दस्तक
दीपों की जगमग
फुलझड़ियों की चमक
मिठाई की महक
होली के रंग
मस्ती और भंग
शादी की रात
सुखों की बरसात
बाल लीला से ओतप्रोत
जुड़वा बच्चों की मौत
घाटे का व्यापार
नया कारोबार
कल्पना प्रवण प्रवृत्ति
ईश्वर का वरद हस्त
दिया और बाती
पोती और नाती
पिता समान भाई
राखी बंधी कलाई
रेशमी फ्राक में छोटी सी मैं
सारी वो यादें
अनकही बातें
मगर अब तो
शहर याद हैं
गाँव की गलियां भूली
कितनों के नाम भूल चुकी
शायद चेहरे भी भूल जायें
जीवित हैं या मृत पता नहीं
जीवन में फिर मुलाकात होगी या नहीं
मेरे अवचेतन मन पर
जो निशान अंकित हैं
वो कभी मिट न पायेंगे
वर्तमान में जीती हूँ
कभी कभी अतीत का झरोखा
खोल कर झांक लेती हूँ
जिनमे ये लम्हे उम्रकैद हैं
No comments:
Post a Comment