Tuesday, 18 October 2011

क्षितिज

क्षितिज अनन्त है 
अखण्ड और महान है 
वह तो आसमान है
बादलों के पार है
धरती मिलन चाहे 
पर्वत प्रयास रत 
सागर मचल रहा 
पक्षी उड़ान भरें 
कोई न छू पाया 
शून्य से भी पार क्षितिज 
आत्मसम्मान क्षितिज 
मेरा स्वाभिमान क्षितिज

1 comment:

  1. I am not so great but thanks for your excellent thoughts about me. No doubt you are a very good poetess and this is one of your excellent works.
    ---Kshitij

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