Sunday, 23 October 2011

मन

अम्मां की गुड़िया
पापा की बिटिया हूँ
दादी की परी
दादू की दुलारी हूँ
निपट अनाड़ी
जादू की पिटारी हूँ
बचपन बुलाता है
दौड़ी चली जाती हूँ
मन करता है
आम के बागों में 
कोयल सी कूकूँ
बादल की छांव में 
मोर बन नाचूँ
सरसों के खेतों में
बसंत बहार बनूँ
प्रेम के समुद्र से  
बादल बनाऊँ
संपूर्ण पृथ्वी पर 
नेह बरसाऊँ 


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