Sunday, 23 October 2011

विजय श्री

लोग कहते हैं 
मैं विजय श्री हूँ
उन्हें लगता है 
मेरी दुनियां  चमन सी है
पर कोई मेरे ह्रदय में झांककर देखे
मेरी मुस्काने की अदा में
एक चुभन सी है
खुश होकर जी रही
यह मेरा साहस है
वर्ना मर मर कर जीना 
आसान नहीं है
खोखली हंसी का लबादा ओढ़े 
परिवार का ताना बाना बुनती हूँ
भाग्य को कोसने की ज़रुरत नहीं 
जो चाहती हूँ वो मेरे पास है
अचानक अपने आसपास 
झांककर देखा
शराब में धुत
बेसुध पड़ा आदमी
कंकाल बनी औरत 
बिलखते बच्चे 
खाली डिब्बे 
चूल्हे पर उबलते आलू
पास में बजबजाती नाली
लोटते कुत्ते और सुअर
तो सचमुच ऐसा लगा 
लोग सच ही कहते हैं
मैं ही विजय श्री हूँ
भाग्य श्री भी मैं ही हूँ

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