लोग कहते हैं
मैं विजय श्री हूँ
उन्हें लगता है
मेरी दुनियां चमन सी है
पर कोई मेरे ह्रदय में झांककर देखे
मेरी मुस्काने की अदा में
एक चुभन सी है
खुश होकर जी रही
यह मेरा साहस है
वर्ना मर मर कर जीना
आसान नहीं है
खोखली हंसी का लबादा ओढ़े
परिवार का ताना बाना बुनती हूँ
भाग्य को कोसने की ज़रुरत नहीं
जो चाहती हूँ वो मेरे पास है
अचानक अपने आसपास
झांककर देखा
शराब में धुत
बेसुध पड़ा आदमी
कंकाल बनी औरत
बिलखते बच्चे
खाली डिब्बे
चूल्हे पर उबलते आलू
पास में बजबजाती नाली
लोटते कुत्ते और सुअर
तो सचमुच ऐसा लगा
लोग सच ही कहते हैं
मैं ही विजय श्री हूँ
भाग्य श्री भी मैं ही हूँ
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