चुटकुले सुनते हैं
उनपर हँसते हैं
यहाँ त्रासदी भी हंसी है
और हंसी भी त्रासदी
मानवीय भावनाओं की
किस्में अधिक हैं
स्पन्दन करता विषय कम
भावनात्मक सूखे को आमंत्रित किया
बचपन दहशत की शाम में जिया
बड़ा खौफ झेल चुकी
छोटे डर बौने पड़े
बिना डर जीने की
कला खूब सीख गयी
बाढ़, तूफ़ान, अकाल, बम
किसी का पता नहीं
कैसे जीते हैं कैसे मरते हैं
मैं ही नहीं मेरे जैसे कितने ही हैं
जिनकी आँखों में आंसू का अकाल पड़ा
जीवन एक राह नहीं
यह तो दोराहा है
यहाँ कोई छांव नहीं
चिलचिलाती धूप है
ऊपर से जीते हैं
अन्दर से मरते हैं
अब तो चुटकुले देख कर भी हँसते हैं
हँसते हँसते हर गम सहते हैं
सहते सहते खुद चुटकुले बन गये
लोग हँसते हैं
उन्हें देखकर हम भी हँसते हैं|
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