Saturday, 29 October 2011

हंसी

चुटकुले सुनते हैं
उनपर हँसते हैं
यहाँ त्रासदी भी हंसी है 
और हंसी भी त्रासदी 
मानवीय भावनाओं की
किस्में अधिक हैं 
स्पन्दन करता विषय कम 
भावनात्मक सूखे को आमंत्रित किया 
बचपन दहशत की शाम में जिया 
बड़ा खौफ झेल चुकी 
छोटे डर बौने पड़े 
बिना डर जीने की 
कला खूब सीख गयी 
बाढ़, तूफ़ान, अकाल, बम 
किसी का पता नहीं 
कैसे जीते हैं कैसे मरते हैं
मैं ही नहीं मेरे जैसे कितने ही हैं
जिनकी आँखों में आंसू का अकाल पड़ा 
जीवन एक राह नहीं 
यह तो दोराहा है
यहाँ कोई छांव नहीं 
चिलचिलाती धूप है 
ऊपर से जीते हैं
अन्दर से मरते हैं 
अब तो चुटकुले देख कर भी हँसते हैं 
हँसते हँसते हर गम सहते हैं
सहते सहते खुद चुटकुले बन गये
लोग हँसते हैं
उन्हें देखकर हम भी हँसते हैं|

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