Monday, 17 October 2011

आत्मा

शांत आत्मा बन 
मैंने सब देखा 
भले बुरे अनुभव किये 
गिरने की पीड़ा सही
ऊँचा उढने की ख़ुशी 
जो और जितना मिला उसे स्वीकारा
नहीं मिला तो संतोष 
हर घटना से पाठ पढ़ा 
जीवन की धूप में खुद को पकाया
पतझड़ में मधुमास ढूंढा
संसय में विश्वास 
अचानक चाँद ढक गया
वायु वेग से बहने लगी 
मेघ के पीछे मेघ दौड़ने लगे
अंधकार पुंजीभूत हो उठा 
पृथ्वी कांप उठी 
बिजली आकाश को चीरने लगी
तभी हुआ निर्वाण का आभास 
परमात्मा का प्रकाश 
अंतिम स्वास 

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