शांत आत्मा बन
मैंने सब देखा
भले बुरे अनुभव किये
गिरने की पीड़ा सही
ऊँचा उढने की ख़ुशी
जो और जितना मिला उसे स्वीकारा
नहीं मिला तो संतोष
हर घटना से पाठ पढ़ा
जीवन की धूप में खुद को पकाया
पतझड़ में मधुमास ढूंढा
संसय में विश्वास
अचानक चाँद ढक गया
वायु वेग से बहने लगी
मेघ के पीछे मेघ दौड़ने लगे
अंधकार पुंजीभूत हो उठा
पृथ्वी कांप उठी
बिजली आकाश को चीरने लगी
तभी हुआ निर्वाण का आभास
परमात्मा का प्रकाश
अंतिम स्वास
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