Saturday, 5 November 2011

रिश्ते

दुनियां की रीति है
बेटी पराई है अपनी नहीं हो सकती 
बहू बहू है बेटी नहीं बन सकती 
जमाई देवता है पूजा जाता है
बेटा कर्तव्यों का बोझ लेकर ही आता है
रिश्ते पहचानना है तो
गहरे पैठकर देखो
रिश्ते बनाने वाले खून से बड़ा 
कोई ज्ञानी नहीं होता 
समानता का पाठ पढ़ाता है
अमीर-गरीब, जाति-धर्म
बेटा-बेटी में भेद नहीं करता 
आदि से अंत तक सफर तय करता है
नहीं मानता दुनियाँ  की रीति को
मनमानी करता है
स्वाभिमानी है पर जानता है
जब शरीर ही अपना नहीं
रिश्ते कैसे अपने 
निःस्वार्थ सेवा करता है
अंतिम पल तक साथ निभाता है 
बिना बोले ही सब कुछ बोलता है
रिश्ते की कच्ची डोर वो ही संभालता है
दुनिया की रीति बदलने को आतुर
व्याकुल हो फड़फड़ाता है
रिश्तों की बेदी पर 
अपनी बलि देता है
जानता है खून खून है पानी नहीं है
रिश्ते से बड़ी जिन्दगानी नहीं है|


No comments:

Post a Comment