राम और श्रवण से
मेरी तुलना होती
हो गई शादी
बढ़ गई जिम्मेदारियाँ
आ गई कुछ नयी सवारियाँ
भाई छोटे से बड़े हो गये
क्षमता से अधिक आशा हुई
सबकी अलग परिभाषा हुई
मज़बूत पैर डगमगाने लगे
लोग मर्यादा की सीमा लांघने लगे
सबको होने लगी परेशानी
शुरू होगी खींचातानी
घर टुकड़े टुकड़े हो गया
मेरा हिस्सा पत्नी के नाम हो गया
सदा राम को आदर्श मन
पत्नी को सीता बनाया
अपने हिस्से का दर्द उसे ही पिलाया
वो तो विषपान कर नीलकंठ बन गई
मैं न तो राम बन सका न श्रवण
परिवार की नज़र में बना
सिर्फ पत्नी का गुलाम
No comments:
Post a Comment