शक्ति और सामर्थ्य हीन
हड्डियों का ढांचा मास गायब
कंकाल झुर्रियों के सहारे
आघातों की मार से बेमौत मरी हुई
आँखें जा चुकी पर मोह की रोशनी बरकरार
कान बेकार फिर भी सुनते हैं बच्चों के पदचाप
दुआ मांगते खुले हाथ
नहीं जानती मांगने से क्या होगा
नियति पर किसी का जोर चला है क्या
कर्मफल का स्वाद तो सबको चखना पड़ेगा
जानकर भी अन्जान ममत्व से लाचार
माँ और कर भी क्या सकती है
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