सावन का महीना
नदी का यौवन
गाँव की हद
बांस की जड़
मेंढकों की टर्र टर्र
दिन का दूसरा पहर
मेघ छंटा आकाश
नभ पटल पर सूर्य देव
हल्का सा ताप
धूप में नहाई घास
क्लांत धरती की नि:स्वास
वृक्षों का कम्पन
सुकोमल पवन
चिकने मृदुल पल्लव
पक्षियों का कलरव
तभी अचानक देखा
नौका पर मृगनयनी
गहरी चितवन
लज्जाशील नेत्र
अप्रतिम सौन्दर्य
पुलकित मन
सलोना चंचल मुख
मनमोहक मुस्कान
घुंघराली केश राशि
लम्बी परिपुष्ट
स्वच्छ सबल
अपलक देखता रहा
विचारों में खो गया
स्तूपाकार बादलों का दल आया
साथ में तूफानी हवा
अतिवृष्टि पानी ही पानी
कहाँ गयी नौका कहाँ मृगनयनी
नज़रें आज भी ढूँढ़ती हैं
यादों में आती है मृगनयनी
और सावन का महीना भी|
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