Sunday, 27 November 2011

सावन


सावन का महीना
नदी का यौवन 
गाँव की हद
बांस की जड़ 
मेंढकों की टर्र टर्र 
दिन का दूसरा पहर  
मेघ छंटा आकाश 
नभ पटल पर सूर्य देव
हल्का सा ताप
धूप में नहाई घास
क्लांत धरती की नि:स्वास      
वृक्षों का कम्पन 
सुकोमल पवन
चिकने मृदुल पल्लव 
पक्षियों का कलरव
तभी अचानक देखा
नौका पर मृगनयनी 
गहरी चितवन 
लज्जाशील नेत्र
अप्रतिम सौन्दर्य 
पुलकित मन
सलोना चंचल मुख
मनमोहक मुस्कान
घुंघराली केश राशि   
लम्बी परिपुष्ट
स्वच्छ सबल
अपलक देखता रहा
विचारों में खो गया 
स्तूपाकार बादलों का दल आया
साथ में तूफानी हवा
अतिवृष्टि पानी ही पानी
कहाँ गयी नौका कहाँ मृगनयनी 
नज़रें आज भी ढूँढ़ती हैं
यादों में आती है मृगनयनी 
और सावन का महीना भी| 

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