मानव मन
प्रबल प्रमाण पर भी अविश्वास
मिथ्या आशा को बाहों से चिपकाये
भ्रान्ति के जाल में बंध व्याकुल होता है
जीवन में न जाने कितना वियोग
जो विकसित गाँव भी श्मशान दिखाई देता है
अव्यक्त मर्म व्यथा प्रकट करते ही
करुण रस का दृश्य मानो विश्व व्यापी हो गया हो
तभी होता है अमावस की रात्रि में प्रकाश
एक दीप का प्रकाश
जो मैंने उस रोज़ अंतर्मन में जलाया था
प्रबल प्रमाण पर भी अविश्वास
परन्तु सत्य
एक दीप का प्रकाश |
No comments:
Post a Comment