Friday, 4 November 2011

एक दीप

मानव मन
प्रबल प्रमाण पर भी अविश्वास 
मिथ्या आशा को बाहों से चिपकाये 
भ्रान्ति के जाल में बंध व्याकुल होता है
जीवन में न जाने कितना वियोग 
जो विकसित गाँव भी श्मशान दिखाई देता है
अव्यक्त मर्म व्यथा प्रकट करते ही
करुण रस का दृश्य मानो विश्व व्यापी हो गया हो
तभी होता है अमावस की रात्रि में प्रकाश 
एक दीप का प्रकाश
जो मैंने उस रोज़ अंतर्मन में जलाया था
प्रबल प्रमाण पर भी अविश्वास 
परन्तु सत्य
एक दीप का प्रकाश |

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