Sunday 4 December 2011

फुर्सत के क्षण

कमरे के कोने में रखी हुई आराम कुर्सी पर झूलते हुए 
फुर्सत के क्षण अब बड़े अच्छे लगने लगे हैं
मधुर संगीत, गजलें दिल के तार झंकृत करने लगे
फूलों का रंग अधिक चटकीला हो आकर्षित करने लगा 
उनींदे बच्चों के प्यारे चेहरे अब मासूम लगने लगे
सुन्दर सुगढ़ सजे संवरे चेहरे सम्मोहित करने लगे
प्रसन्न मन से मित्रों और सम्बन्धियों संग त्यौहार मनाने लगे
ज़िन्दगी जीने का हर मौका तलाशने की कोशिश करने लगे
कुदरत कोहरे की चादर ओढ़े प्यार से रिश्तों को लपेटने लगी
लताओं वृक्षों और चट्टानों से छाया और सहानुभूति मिलने लगी
फुर्सत के क्षण अब बड़े अच्छे लगने लगे |



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