Friday, 23 December 2011

माँ

सुबह की शुरुआत है
टूटी हुई खाट है
जूठे बर्तन धोती हूँ
सब कुछ सहती हूँ
दूसरों को खिलाती हूँ
स्वयं अत्रप्त हूँ
थककर चूर हूँ
बिस्तर निहारती हूँ
शराबी पति से
आँखें चुराती हूँ
फिर भी एक आस है
जीवित होने का अहसास
मैं भी अब माँ हूँ
मुझे लेनी है साँस
बुझती हुई प्यास
अपने हिस्से की भूख
सूरज की नर्म धूप
चंदा की छाया
थोड़ी सी माया
सितारों की चमक
पूरी दुनिया का सुख

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