Friday, 16 December 2011

महूर्त

शुभ मुहूर्त का इंतजार
सज गए बाज़ार
झिलमिलाता कारोबार
स्वप्निल संसार
दूल्हा दुल्हन के साथ
रिश्तेदारों का सामान
बढे कपड़े आभूषण  के दाम
फल मीठा छु रहे आसमान
दर्जी से लेकर हलवाई
ढोल बजा पंडित शहनाई
हर जगह आपाधापी
विवाह स्थल की मारामारी
जगह एक दुल्हन चार
ऐसा है शुभ महूर्त का कारोबार
बिना नाम पढ़े ही घुस गए
पढ़े लिखे गंवार बन गए
दूल्हा दुल्हन देखने की जरुरत नहीं
सिर्फ भोजन दिखता है घडी दिखती है
अगली सुबह की भागमभाग दिखती है
आर्थिक संकट दोनों पक्छों को आया है
इसलिए बिना शगुन आशीर्वाद अधुरा है
आमंत्रण जेब पर भारी है
रिश्ते निभाने की अपनी लाचारी है .

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