गाँव के किनारे बंजारों के डेरे
जवान और सलोनी लड़की
शराब बनाती सस्ती बेचती
नौजवानों का शिकार करती
रूप जाल में बंधक बनाती
आँख मूँद थकान उतारती
हवा धुप उड़ाती चीखती चिल्लाती
पूरब पश्चिम में भेद नहीं करती
समय रफ़्तार से बढ़ता गया
दिन महीने में बदले महीने साल में
आनेवाले आते जानेवाले चले जाते
छल का बहिरंग बड़ा सुन्दर होता है
अब वह अकेली नहीं उसके जैसी चार हैं
उन सबका अपना अलग संसार है |
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