Tuesday, 6 December 2011

एक बंजारन

गाँव के किनारे बंजारों के डेरे 
जवान और सलोनी लड़की
शराब बनाती सस्ती बेचती 
नौजवानों का शिकार करती
रूप जाल में बंधक बनाती 
आँख मूँद थकान उतारती
हवा धुप उड़ाती चीखती चिल्लाती 
पूरब पश्चिम में भेद नहीं करती
समय रफ़्तार से बढ़ता गया
दिन महीने में बदले महीने साल में
आनेवाले आते जानेवाले चले जाते 
छल का बहिरंग बड़ा सुन्दर होता है
अब वह अकेली नहीं उसके जैसी चार हैं 
उन सबका अपना अलग संसार है |

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