प्रेम का नाम न लो
वह तो एक पीड़ा थी
ह्रदय को सम्हालो
सुख के स्वप्न विलीन हुए
संदेह का इंद्रजाल ही सच है
कष्ट सहन करने के लिए प्रस्तुत हो जा
प्रतारणा में बड़ा मोह होता है
छोड़ने का मन ही नहीं करता है
मन की उलझन कयूँ
बन्धनों से बाहर आओ
तोड़ दो व्यूह
कुचल दो पैरों से
भाग्य के लेखे को
धूल में लोटने दो
अमंगल का अभिशाप
आत्मविश्वास से परिपूर्ण बनो
स्त्री बनना सहज नहीं है
वह तो एक पीड़ा थी
ह्रदय को सम्हालो
सुख के स्वप्न विलीन हुए
संदेह का इंद्रजाल ही सच है
कष्ट सहन करने के लिए प्रस्तुत हो जा
प्रतारणा में बड़ा मोह होता है
छोड़ने का मन ही नहीं करता है
मन की उलझन कयूँ
बन्धनों से बाहर आओ
तोड़ दो व्यूह
कुचल दो पैरों से
भाग्य के लेखे को
धूल में लोटने दो
अमंगल का अभिशाप
आत्मविश्वास से परिपूर्ण बनो
स्त्री बनना सहज नहीं है
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