Wednesday, 21 December 2011

बीते हुए पल

चारो धाम घूमने
पहली बार निकले
लोग मिले और बिछड़े
अनगिनत भाव उमड़े
ऊपर बर्फ उज्वल
अन्दर गर्म जल
कहीं राह पतली
कहीं पर्वत कहीं खाई
प्रक्रति का खेल
कहीं पानी कहीं तेल
चारो तरफ समुद्र
पानी का दरिद्र
नारियल पानी
जनता दीवानी
जहाँ खिली धूप
बदली घिर आई
आनन् फानन में
धरती भिगोई
फूलों की क्यारियां
रस्सी में सूखती मछलियाँ
जो पल बीते
यादों में आये
बिछड़े जो मित्र
फिर न मिल पाए
कभी गमगीन हुए
कभी हर्षाये
यात्रा में हमने
पल जो बिताये .

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