Thursday, 1 December 2011

मित्र

वह सत्य बयां कर रहा था या प्रशंशा 
पता नहीं चला जानना भी मुश्किल था
मैं उसकी मित्र थी शायद इसीलिये
मुझे दुखी नहीं देख पा रहा था
बात बदलने की कोशिश में पकड़ा गया
मुझे बचाकर खुद दांव पर लग गया बेचारा
मित्रता का फ़र्ज़ निभाने में खुद शहीद हो गया
वह कभी नहीं जान पायेगा मेरा गम 
सच्चा मित्र खोकर कोई चैन से जीता हैं क्या
उसके निराश्रित परिवार को देखकर 
छटपटाता है मन घुटता है दम
जीवन भर का दर्द मुझे मित्र बनकर दे गया
मैं उसकी कुर्बानी को व्यर्थ नहीं गवाऊँगी 
अब कभी किसी को मित्र नहीं बनाऊँगी|

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